❤❤श्री राधा नित्य निकुंजबिहारी ❤❤

 
❤❤श्री राधा नित्य निकुंजबिहारी ❤❤
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नित्य धाम बृंदाबन स्याम। नित्य रूप राधा ब्रज-बाम ॥ नित्य रास, जल नित्य बिहार । नित्य मान, खंडिताऽभिसार ॥ ब्रह्म-रूप येई करतार । करन हरन त्रिभुवन येइ सार ॥ नित्य कुंज-सुख नित्य हिंडोर । नित्यहिं त्रिबिध- समीर-झकोर ॥ सदा बसंत रहत जहँ बास । सदा हर्ष,जहँ नहीं उदास ॥ कोकिल कीर सदा तहँ रोर । सदा रूप मन्मथ चितचोर ॥ बिबिध सुमन बन फूले डार । उन्मत मधुकर भ्रमत अपार ॥ नव पल्लव बन सोभा एक । बिहरत हरि सँग सखी अनेक ॥ कुहू कुहू कोकिला सुनाई । सुनि सुनि नारि परम हरषाईं ॥ बार बार सो हरिहिं सुनावति । ऋतु बसंत आयौ समुझावतिं ॥ फागु-चरित-रस साध हमारैं । खेलहिं सब मिलि संग तुम्हारैं ॥ सुनि सुनि सूर स्याम मुसुकाने । ऋतु बसंत आयौ हरषाने ॥
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shwetashweta
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