❤श्री श्यामा कुंजबिहारी❤

 
❤श्री श्यामा कुंजबिहारी❤
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श्री गोवर्धन वासी सांवरे लाल तुम बिन रह्यो न जाय हो॥ बृजराज लडेतोलाडिले॥ बंक चिते मुसकाय के लाल सुंदर वदन दिखाय ॥ लोचन तल पे मीन ज्यों लाल, पलछिन कल्प बिहाय हो ॥१॥ सप्त स्वर बंधान सों लाल, मोहन वेणु बजाय ॥ सुरत सुहाइ बांधिके नेक, मधुरे मधुर स्वर गाय हो ॥२॥ रसिक रसीली बोलनी लाल, गिरि चढि गैयां बुलाय ॥ गांग बुलाइ धूमरी नेंक, ऊँची टेर सुनाय हो ॥३॥ दृष्टि परी जा दिवसतें लाल, तबते रुचे नहिं आन ॥ रजनी नींद न आवही मोहे, बिसर्यो भोजन पान हो ॥४॥ दर्शन को यनुमा तपे लाल बचन सुनन को कान हो । मिलिवे को हीयरो तपे मेरे जिय के जीवन प्राण हों ॥५॥ मन अभिलाषा ह्वे रही लाल, लगत नयन निमेष ॥ एकटक देखूं आवतो प्यारो, नागर नटवर भेष हों ॥६॥ पूर्ण शशि मुख देख के लाल, चित चोट्यो बाही ठोर ॥ रूप सुधारस पान के लाल, सादर चंद्र चकोर हो ॥७॥ लोक लाज कुल वेद की लाल, छांड्यो सकल विवेक ॥ कमल कली रवि ज्यों बढे लाल, क्षणु क्षणु प्रीति विशेष हो ॥८॥ मन्मथ कोटिक वारने लाल, देखी डगमग चाल ॥ युवती जन मन फंदना लाल, अंबुज नयन विशाल ॥९॥ यह रट लागी लाडिले लाल, जैसे चातक मोर ॥ प्रेम नीर वर्षाय के लाल नवघन नंदकिशोर हो ॥१०॥ कुंज भवन क्रीडा करे लाल, सुखनिधि मदन गोपाल ॥ हम श्री वृंदावन मालती लाल, तुम भोगी भ्रमर भूपाल हो ॥११॥ युग युग अविचल राखिये लाल, यह सुख शैल निवास ॥ श्री गोवर्धनधर रूप पें बलजाय चतुर्भुज दास ॥१२॥
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