पलक न लागै मेरी स्याम बिना।
हरि बिनू मथुरा ऐसी लागै, शशि बिन रैन अंधेरी।
पात पात वृन्दावन ढूंढ्यो, कुंज कुंज ब्रज केरी।
ऊंचे खडे मथुरा नगरी, तले बहै जमना गहरी।
मीरा रे प्रभु गिरधरनागर, हरि चरणन की चेरी।
मीराबाई कहती हैं कि - हे मेरे श्याम! तुझसे ऐसी लगन लगी है कि तेरे वियोग में मेरी पलकें एक पल को भी नहीं झपकतीं। हरि के बिना मुझे मथुरा नगरी ऐसी लगती है जैसे चंद्र के बिना रात को अंधेरा छा गया हो। मैंने वृंदावन जाकर पत्ते-पत्ते में उसे ढूंढा और ब्रज जाकर कुंज-कुंज में झांक लिया, मगर वह मुझे कहीं भी नहीं मिला। मथुरा नगरी ऊंचाई पर खडी है और उसके नीचे गहरी यमुना नदी बह रही है। हे मीरा के प्रभु गिरधरनागर! मैं तो हरि के चरणों की दासी हूँ, अत: मुझे दर्शन देकर कृतार्थ करो